***तीन पहर***
****/*तीन पहर*****——- तीन पहर तो बीत गये, बस एक पहर ही बाकी है। जीवन हाथों से फिसल गया, बस खाली मुट्ठी बाकी है। सब कुछ पाया इस जीवन में, फिर…
****/*तीन पहर*****——- तीन पहर तो बीत गये, बस एक पहर ही बाकी है। जीवन हाथों से फिसल गया, बस खाली मुट्ठी बाकी है। सब कुछ पाया इस जीवन में, फिर…
ऐसा लग रहा है जैसे राजनीति की नैया जल्दी डूब जाएगी। आखिर कब तक मुफ्त का राशन की तस्वीर के साथ समाज सेवा करें, मेरे राजनीति का अंकुरण अभी तो…
(कविता) एक और दिन यूं समय निकलता जाएगा जी भर के जी लो ये पल छिन कुछ पल मीठे, कुछ पल खट्टे जीवन के ये चट्टे, बट्टे कुछ मुश्किल कुछ…
Surabhivani–Agra(Gyaprasad mourya Rajat) 1-माटी के इस दर्द का ,माटी जाने दर्द। भूख प्यास औ पीर को,हवा न जाने सर्द। 2-सर पर गठरी बोझ की,चले गाँव की ओर। माटी तेरे दर्द…
शम्भू नाथ क्यों आंखों में बसे हो तुम। छाई हुई तन्हाई। अभी दूर रहो मुझसे। करने दो हमें पढ़ाई। बेकार की बातें मन में। उफनाने लगती हैं। तुझे देख के…
होलिका दहन के पूर्व होलाष्टक 8 दिन का माना जाता है। होलाष्टक में कोई भी नया शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इन आठ दिनों में मांगलिक कार्य, गृह निर्माण…
(अक्षय आजाद भण्डारी राजगढ़ जिला धार, मध्यप्रदेश) होली की बुलावा पाती आई होली कहकर आई आई होली बजाओ ढोलक…
लाल रंग तुम लो, मैं लेता हूं नीला। तुम मलो सूखा सूखा, मैं रंगता हूं गीला। रंग आए हैं रंगोने- प्रीत जगाई, होली आई। बरस भर बाद, आया है ऐसा…
भारत के हर राज्य एवं हर स्थान पर होली का त्योहार मनाने की एक अलग ही परंपरा है। इसमें कुछ स्थानों पर होली के पांचवें दिन यानी चैत्र कृष्ण पंचमी…
धनवानों की भरी है झोली, नित्य मनाते हैं दीवाली, जिनके दिल में प्रेमभरा है,जेब रही है सदा से खाली, हमने देखा वे मतवाले, हर फागुन में खेले होली॥ श्वेत-श्याम का…
मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा, होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा। नीला,पीला, हरा, गुलाबी, सतरंगी अंबर होली का, आओ मिलकर खुशियां बांटें, कष्टों की…
फिल्म – कहो ना प्यार है मूल गीत -कहो ना प्यार है… क्या उमंग है, क्या तरंग है रंगों की क्या बौछार है… होली का त्योहार है ॥ कुछ रंग…
(यज्ञ शर्मा)मुंबई-उनका असली नाम जंग बहादुर सिंह नहीं है। पर, वे हैं जंग बहादुर। उन्होंने एक बड़ी जंग लड़ी। और, तमाम उम्मीदों के खिलाफ जीती। फिर, बड़ी अनहोनी हो गयी।…
…….रजत आगरा……. ये प्यास कैसे बुझती सागर बदल गया . पनघट से लेके आया गागर बदल गया . मैंने पसारे पाँव औकात भर ही तो थे , ढकता बदन कैसे…
(यज्ञ शर्मा)एक दिन मैंने ईश्वर के साथ शतरंज खेली। पहली चाल मैंने चली और बोला, ”मैं एक नया धर्म बनाना चाहता हूं।” ईश्वर ने अपना प्यादा आगे बढ़ाया और बोला,…
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